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देश की पहली जंगे आज़ादी 1857 में उर्दू पत्रकारिता ने जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी उसका अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि अंग्रेज़ों ने दिल्ली पर दोबारा कब्ज़ा करने के बाद जिन लोगों को सब से पहले फांसी पर लटकाया उनमें ” देहली उर्दू अखबार,” के संपादक मौलवी मोहम्मद बाकर भी थे। दोष यह था कि उन्होंने अपने अख़बार में विद्रोहियों की हिमायत की थी . मौलवी मोहम्मद बाक़र देश की आज़ादी पर क़ुर्बान होने वाले प्रथम पत्रकार हैं। यह पुस्तक उन्ही की याद में लिखी गयी है ।
यह पुस्तक वैसे तो 1857 की क्रांति मे उर्दू पत्रकारिता की भूमिका पर आधारित है परन्तु यह भारत में उर्दू पत्रकारिता के 200 साल का इतिहास भी बयां करती है। यह उर्दू पत्रकारिता पर हिंदी भाषा में प्रकाशित होने वाली पहली पुस्तक है।
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